The administration should also listen to the voice of the elected representatives in Chandigarh

Editorial: चंडीगढ़ में निर्वाचित प्रतिनिधियों की आवाज़ भी सुने प्रशासन

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The administration should also listen to the voice of the elected representatives in Chandigarh

The administration should also listen to the voice of the elected representatives in Chandigarh: चंडीगढ़ में भाजपा नेताओं और पार्षदों का शहर की अफसरशाही पर  मनमर्जी का आरोप गंभीर मामला है। मेयर समेत भाजपा के तमाम पार्षद इसके विरोध में अपने पदों से इस्तीफे का ऐलान कर चुके हैं। बेशक, यह सब राजनीतिक दबाव बनाने का प्रयास हो सकता है, लेकिन पार्षदों के इस आरोप से वास्ता रखना पड़ेगा कि जब शहर में निर्वाचित प्रतिनिधियों की एक संस्था नगर निगम है, तब उसे विश्वास में लेकर अफसर काम क्यों नहीं कर रहे हैं। यह लगभग हर राज्य और यूटी की समस्या बन गई है कि राजनीतिक पदाधिकारी प्रशासन के अधिकारियों पर इसका आरोप लगाते हैं कि उन्हें विश्वास में नहीं लिया जाता और उनके द्वारा कहे काम नहीं कराए जाते। चंडीगढ़ में लोकसभा सांसद बेशक कांग्रेस से है, लेकिन नगर निगम में भाजपा शासित है। वहीं केंद्र में भी भाजपा की सरकार है। बावजूद इसके प्रशासन के अधिकारियों के द्वारा नगर निगम और पार्षदों की अनदेखी करके निर्णय लिए जाने का मामला विचारणीय भी है। ऐसा तब है, जब शहर में प्रॉपर्टी टैक्स लगाने के प्रस्ताव को नगर निगम ने खारिज कर दिया था, लेकिन प्रशासन ने उसे लागू कर दिया और वह भी रेजिडेंशियल कैटेगरी में 3 फीसदी से बढ़ाकर नौ और कॉमर्शियल कैटेगरी में भी 3 से बढ़ाकर छह प्रतिशत कर दिया गया है। अब शहर में भाजपा के समक्ष जहां यह प्रश्न है कि जनता को क्या जवाब देगी, वहीं दूसरे राजनीतिक दलों की ओर से भी इसके खिलाफ आवाज बुलंद की जा रही है। हालांकि प्रशासन की ओर से अभी तक इसका जवाब नहीं आया है कि आखिर किन कारणों से ऐसा किया गया।

इस तथ्य से सभी वास्ता रखेंगे कि यह काम नगर निगम का है कि शहर में विभिन्न टैक्स लगाने के संबंध में निर्णय ले। हालांकि आजकल प्रशासन के अधिकारियों के लिए नगर निगम और पार्षदों की जैसे अहमियत नहीं रही। वे अपने स्तर पर फैसले लेकर उन्हें लागू कर रहे हैं। बीते दिनों में नगर निगम ने सीवरेज सेस बढ़ाने का प्रस्ताव भी खारिज कर दिया था। लेकिन प्रशासन के अधिकारियों ने इसे भी अपने स्तर पर ही बढ़ा दिया था। बताया गया है कि ऐसे ही कई अन्य प्रस्तावों पर भी प्रशासन अपने स्तर पर ही निर्णय ले चुका है। अब पार्षद अगर इसे गैर संवैधानिक बता रहे हैं तो यह गंभीर बात है। आखिर यह तो स्पष्ट होना ही चाहिए कि किन बड़ी जरूरतों के चलते प्रॉपर्टी टैक्स और दूसरे टैक्सेज में बढ़ोतरी की गई। इन निर्णयों की वजह से प्रशासन और नगर निगम के बीच खाई नजर आने लगी है। ऐसा पहले भी कई बार हुआ है, लेकिन इस बार जो घट रहा है, वह अभूतपूर्व है। गौरतलब है कि कांग्रेस ने इस प्रकरण को भाजपा के खिलाफ हथियार के रूप में इस्तेमाल किया है। भाजपा जहां ऐसे टैक्सेस के लिए प्रशासन के अधिकारियों को जिम्मेदारी ठहरा रही है, वहीं कांग्रेस इसके लिए भाजपा शासित नगर निगम को जिम्मेदार बता रही है। वहीं आम आदमी पार्टी का भी कुछ ऐसा ही आरोप है।

गौरतलब है कि भाजपा आरोप लगा रही है कि प्रशासन के अधिकारी जो योजना बनाते हैं, वह फलीभूत नहीं होती और उससे पैसे की बर्बादी होती है। पार्टी शहर में 24 घंटे पानी देने की प्रशासन की योजना पर भी सवाल उठा रही है, उसका आरोप है कि 75 करोड़ खर्च करने के बावजूद यह योजना सिरे नहीं चढ़ी है। वहीं शहर में सडक़ों के रख रखाव और उनके बनाए जाने पर भी सवाल उठाए गए हैं। प्रश्न यह है कि आखिर बढ़ा हुए प्रॉपर्टी टैक्स से जो कमाई होगी, उसका खर्च कहां होगा। शहर में तमाम सडक़ें बदहाल हैं। पार्क जोकि नगर निगम के पास हैं, वे अस्तव्यस्त हैं, वहीं शहर में सफाई का हाल भी बुरा है। आम आदमी यह समझ ही नहीं पाता कि आखिर वह अपनी समस्याओं के लिए किसे कहे। नगर निगम से कहे तो वह प्रशासन की जिम्मेदारी ठहरा देता है, वहीं प्रशासन के अधिकारी इस तरह के मामलों में कोई जवाब देते ही नहीं। फिर किसके सामने रोना रोया जाए। प्रॉपर्टी टैक्स में भी बहुत ज्यादा बढ़ोतरी की गई है, जोकि आम नागरिक के लिए परेशानी का सबब है।

 मालूम हो, शहर के सांसद मनीष तिवारी भी इसका आरोप लगा चुके हैं कि उनके कहे काम नहीं हो रहे। शहर में तमाम ऐसे प्रोजेक्ट हैं, जिन्हें अब तक खत्म हो जाना चाहिए था। लेकिन वे भी बस खिंचते ही जा रहे हैं। चंडीगढ़ के मास्टर प्लान 2031 का मामला हो या फिर ट्रिब्यून चौक-जीरकपुर फ्लाईओवर के निर्माण का केस, अभी इन पर कुछ भी नहीं हुआ है। हाउसिंग स्कीम, लीज होल्ड टू फ्री होल्ड, सीएचबी के मकानों की वन टाइम सेटलमेंट आदि अनेक ऐसे मुद्दे हैं, जिनका समाधान होना आवश्यक है। जरूरी है कि तमाम योजनाओं और कार्यक्रमों की एक डेडलाइन तय की जाए। प्रशासन के अधिकारियों को शहर के प्रति अपनी जिम्मेदारी को समझना होगा, क्योंकि जनता के प्रति जवाबदेह वे नहीं हैं अपितु निर्वाचित प्रतिनिधि हैं। यह भी सुनिश्चित होना चाहिए कि निर्वाचित प्रतिनिधियों की आवाज अनसुनी न हो, अपितु उसे गंभीरता से सुना जाए। 

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